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माता-पिता की कसौटी

प्रा. डॉ. योगेन्द्र यादव

गॉंधीयन स्कालर

गॉंधी रिसर्च फाऊंडेशन, जलगॉंव, महाराष्ट्र, भारत

सम्पर्क सूत्र- 09404955338, 09415777229

र्इ-मेल- dr.yadav.yogendra@gandhifoundation.net; dr.yogendragandhi@gmail.com

 

माता-पिता की कसौटी

 

समाज में हर जगह भले-बुरे लोग रहते हैं. उनके बीच में ही हमें जीवन यापन करना पड़ता है. हमारे बच्चे भी उन्हीं के बीच में रह कर बहुत कुछ सीखते हैं. महात्मा गॉंधी कहते हैं कि ऐसे समय में माता-पिता की कसौटी हो जाती है. ऐसी परिस्थितियों में उन्हें सावधान रहने की जरूरत है. तभी उनके बच्चों का समुचित विकास हो सकता है. यदि माता-पिता अपने बच्चे की देखभाल नहीं रखते हैं, वह किसके साथ खेलता है, किसके साथ उठता-बैठता है, तो आने वाले समय में समस्या खड़ी हो सकती है. इस कारण माता-पिता को आज के माहौल में विशेष सावधानी की जरूरत है. उसे अच्छे-बुरे का ज्ञान कराने की जरूरत है. कहने का तात्पर्य यह है कि उसे खूब अच्छी तरह से संस्कारित करने की जरूरत है. जिससे वह बिगड़ न जाए, अन्यथा सब कुछ बरबाद हो जाएगा. भारतीय समाज में एक कहावत है, पूत सपूत तो क्‍यों धन संचै, पूत कपूत तो क्‍यों धन संचै. इसका मतलब यह है कि यदि समय रहते हुए आपने उसे अच्छी तरह संस्कारित किया, उसे अच्छी शिक्षा-दीक्षा दी तो उसके लिए धन संचय करने की कोर्इ जरुरत ही नहीं है. और यदि आपका पुत्र गलत संगति में आकर बिगड़ गया, तो आपके संचित धन को अपने व्यसनों में उड़ा देगा. तो ऐसे पुत्र के लिए कमाने की क्‍या जरूरत है.

महात्मा गॉंधी ने दक्षिण अफ्रीका में गिरमिटियों के प्रति हो रहे जुल्मों के खिलाफ सत्याग्रह का बिगुल फूँक दिया था, उस समय वे टालस्टाय फार्म में रहते थे, उनके तीन बेटे भी उनके साथ थे. आंदोलन मे भाग लेने वाले लोगों के मवाली किसम के लड़के भी रहने के लिए आये. उनके लड़के भी उनके साथ रहने लगे. खेलने-कूदने लगे. यह देख कर उनके मित्र केलेनबैक को नागवार गुजरा, उन्होंने सोचा कि यदि यही हाल रहा तो गॉंधी जी के बच्चे तो बरबाद हो जाएँगे. इसलिए उनहोंने एक दिन कहा कि आश्रम के कुछ लड़के बहुत ही उधमी और दुष्ट स्वभाव के हैं, आवारा किस्म के हैं. आपका यह तरीका मुझे जरा सा भी नहीं जॅंचता है. इन लड़कों को आप अपने लड़कों के साथ रखें. तो इसका एक ही परिणाम आ सकता है. उन्हें इन आवारा लड़कों की संगति की छूत लगेगी. इससे वे बिगड़ जाएँगे. किन्तु महात्मा गॉंधी तो राष्टपिता थे. वे क्‍यों अपने और दूसरों के लड़कों मे भेद करने लगे. उन्होंने केलेनबैक को उत्तर दिया कि ये नौजवान मेरे बुलाने के कारण यहाँ आये हैं. यदि मैं इन्हें किराये के पैसे दे दूँ, तो ये सभी कल ही अपने-अपने घरों को चले जाएगे. यदि मेरे लड़कों में सचमुच कोर्इ गुण होंगे, तो इनकी छूत उनको लगेगी और उनमें सुधार ही होगा. इससे इतना जरूर हुआ कि बच्चों के अंदर जो अहंकार का भाव हो सकता था, वह निकल गया. किन्तु आजकल परिवेश में अपने बच्चों के देखलभाल की काफी जरूरत है. गॉंधीजी को भी आगे चलकर अपने एक लड़के के पतन के कारण उपवास करना पड़ा. तब जाकर वे उसमें सुधार कर सके.

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