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क्रिकेट के पितामह और राष्ट के पिता

प्रा. डॉ. योगेन्द्र यादव

 गाँधीयन स्कालर

गॉंधी रिसर्च फाऊंडेशन, जलगॉंव, महाराष्ट्र, भारत

सम्पर्क सूत्र- 09404955338,09415777229

र्इ-मेल-dr.yadav.yogendra@gandhifoundation.net; dr.yogendragandhi@gmail.co.

 

क्रिकेट के पितामह और राष्ट के पिता

 

भारतीय क्रिकेट के पितामह प्रिंस रणजीत सिंह राष्ट्रपिता महात्मा गॉंधी के एक अच्छे मित्र थे. महात्मा गॉंधी की खेलों में बहुत रुचि थी किन्तु उनके पिताजी की तबीयत खराब रहने के कारण वे उसमें पर्याप्त समय नही दे पाते थे. जब उनके हेड मास्टर गिमी साहब ने सभी बच्चों ने खेल अनिर्वाय कर दिया तब वे क्रिकेट खेलने के लिए विवश हो गये. एक दिन बादल होने की गफलत होने के कारण वे समय से खेलने नहीं पहुँच पाये, जिसके कारण उन्हें गिमी साहब की फटकार पड़ी और एक या दो पैसे का दंड हुआ. जिसे वे बाद में माफ करवाने में सफल हुए. महात्मा गॉंधी कानून की पढ़ार्इ करने के लिए जब इंग्लैंड तो उनके पास चार सिफारिशी पत्र थे. जिसमें से एक पत्र महाराजा रणजीत सिंह का था. किन्तु उनके साथ कोर्इ महत्त्व की घटना नहीं होने के कारण गॉंधी जी ने उनका किसी प्रकार का कोर्इ वर्णन नहीं किया है. उनकी आज उनकी 140वीं जयंती है. महात्मा गॉंधी ने 1898 के अपने लेख में उनके नाम का जिक्र किया है कि वे बहुत ही पढ़े-लिखे इंसान थे.

उनका जन्म 10 सितम्बर 1872 को काठियावाड़ रियासत के सरोदर गॉंव में हुआ था. उम्र के 16वें साल में पढ़ार्इ के लिए वे इंग्लैंड गये. वहॉं जाने के पहले से ही उनकी क्रिकेट मे रुचि थी. विश्व की प्रतिष्ठित पत्रिका विजडन ने उन्हें 1897 क्रिकेट आफ द र्इयर से सम्मानित किया. इस समय गॉंधीजी दक्षिण अफ्रीका में थे. वे बहुत ही उच्चकोटि के क्रिकेटर थे, इसी कारण अंग्रेज भी उनकी प्रतिभा का लोहा मानते थे. क्रिकेट के जनक ग्रेस ने उनकी बल्लेबाजी की खूब प्रशंसा की है. हर वर्ष रणजी चैम्पियनशिप उन्हीं के सम्मान में आयोजित की जाती है. वे अपनी कलाइयों का उपयोग बखूबी करते थे. जिसके कारण प्रतिद्वंदी टीम के कप्तान को अपनी फील्डिंग जमाने में काफी तकलीफ होती थी और वे खूब रन बनाते थे. उनकी इसी खासियत के कारण अंग्रेजों को उन्हें अपनी टीम में सम्मिलित करना पड़ा. और उन्होंने उन्हें कभी निराश नहीं किया. बड़ी-बड़ी पारियॉं खेलीं. उन्होंने प्रथम गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया. 60 वर्ष की अवस्था में 2 अप्रैल 1933 को इस महान क्रिकेटर का अवसान हो गया. इसके बाद अत्यंत व्यस्त होने के कारण और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी न होने के कारण महात्मा गॉंधी से उनका निकट का सम्ब्ंध नहीं हो पाया. 144वीं वर्षगाठ पर उनको भावभीनी श्रद्धांजलि.





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